लंबे समय बाद
आज फिर अपनी लेखनी को
उर्दू जुबान के सफर पर ले चली
तो उन राहों पर अपना सा दर्द
किसी दरख्त की फुनगी पर उकड़ूँ बैठा मिला
पूछा, कैसे हो ?
मेरी खामोशी पर
उसने आँखों में सितारे भर कहा -
मालूम था तुम इस राह फिर आओगे
मैंने कानों में तुम्हारी आवाज भर रखी थी।